कैसे करे भोजन जो शरीर का करे पोषण
अधिकांश मामलों में यह देखा गया है कि परिवारों में खाने की मेज (Dining Table) पर पति अपनी पत्नी के प्रति और पत्नी अपने पति के प्रति गीले-शिकवे लेकर बैठ जाते हैं या किसी चीज को लेकर अप्रिय टिप्पणी करने लगते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों की अनपेक्षित प्रगति रिपोर्ट और उनके त्रुटिपूर्ण आचरण या क्रिया – कलापों की चर्चा उनके माँ-बाप करने लगते हैं। इससे चर्चा प्रारम्भ करने वाले और उस व्यक्ति जिसको लेकर चर्चा की जा रही होती है के मस्तिष्क तनावग्रस्त हो जाते हैं। मानसिक तनाव की स्थिति में हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले रसों और अन्य द्रव्यों का प्रवाह सामान्य नहीं रह जाता। इसका प्रभाव हमारी भूख और पाचन क्रिया के लिए आवश्यक जठराग्नि पर भी पड़ता है। ऐसा होने पर जठराग्नि मन्द पड़ जाती है।
भोजन करने के पूर्व और भोजन करने के समय कोई तनाव नहीं होना चाहिए और न ऐसी कोई चर्चा की जानी चाहिए जिससे तनाव का वातावरण बने। ऐसा होने पर एक तो भूख मर जाती है, दूसरे भोजन को पचाने वाली जठराग्नि मन्द पड़ जाती है और खाया गया भोजन ठीक से नहीं पचता। परिणामतः खाया गया भोजन व्यर्थ चला जाता है और अनेक बीमारियों का कारण बन जाता है।

भोजन कब और कैसे करना चाहिए
भोजन कब और कैसे करना चाहिए इसके बारे में आयुर्वेद के ग्रंथो में आचार्य चरक, सुश्रुत और वाग्भट आदि ने आहार विधि विधान का विस्तार से वर्णन किया है | भोजन बढ़िया , स्वादिष्ट होने और जठराग्नि के प्रदीप्त होने पर भी यदि इन नियमो का पालन नहीं किया जाये तो अपेक्षित लाभ नहीं प्राप्त होता है | इसके लिए निम्न 12 तरीके बताये गए है –
1-उष्ण आहार लेना चाहिए
2-स्निग्ध आहार लेना चाहिए
3-मात्रा पूर्वक आहार लेना चाहिए
4-भोजन के पच जाने पर आहार लेना चाहिए
5-वीर्य की अविरुद्ध आहार लेना चाहिए
6-अपने मन के अनुकूल स्थान पर लेना चाहिए
7-अनुकुल सामग्री के सहित लेना चाहिए
8-आहार को अधिक जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए
9-आहार को अधिक देर से या बहुत धीरे-धीरे नहीं खाना चाहिए
10-बोलते हुए या हंसते हुए नहीं खाना चाहिए
11-अपनी आत्मा यानि भूख का विचार करके खाना चाहिए
12-आहार द्रव्य में मन लगाकर भोजन करना चाहिए

इन तरीको से भोजन करने से क्या फायदा होता है तथा इन नियमो का पालन करने से क्या लाभ प्राप्त होता है इसे अब यहाँ बता रहे है राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय वाराणसी के डॉ अजय कुमार
उष्ण आहार से लाभ-
हमेशा गर्म भोजन करना चाहिए क्योंकि गर्म भोजन करने से भोजन में स्वाद मालूम चलता है, खाने पर अग्नि तीव्र होती है, शीघ्र ही भोजन पच जाता है, वायु का अनुलोम होता है ,कफ़ का शोषण हो जाता है, इसलिए भोजन गर्म ही करना चाहिए।
स्निग्ध आहार से लाभ-
स्निग्ध भोजन स्वादिष्ट लगता है। खा लेने पर मंदाग्नि को तीव्र करता है, उसका पाक शीघ्र हो जाता है, वायु का अनुलोमन करता है, शरीर की वृद्धि करता है, इंद्रियों को दृढ़ करता है, बल को बढ़ाता है।
मात्रा पूर्वक आहार के लाभ —
मात्रा पूर्वक आहार कफ, वात, पित्त को पीड़ित नहीं करते हुए पूर्ण रूप से आयु को ही बढ़ाता है ,अग्नि को नष्ट नहीं करता है , और बिना किसी उपद्रव के आसानी से पच जाता है|
आहार जीर्ण होने पर भोजन करने से लाभ —
पहले का खाया भोजन पचने के बाद ही भोजन करने से अग्नि प्रदीप्त रहती है, भोजन की इच्छा बनी रहती है, तथा डकार शुद्ध रूप में आता है, हृदय की शुद्धि बनी रहती है, और इस प्रकार खाया हुआ आहार आयु को बढ़ाता है ।
अविरुद्ध वीर्य वाले आहार से लाभ —
जो आहार वीर्य में परस्पर विरुद्ध ना हो उसे ही खाना चाहिए । ऐसे आहार का सेवन करने से रोग उत्पन्न नहीं होते हैं ।
इष्ट देश में आहार से लाभ —
अनुकूल स्थान पर और मन को प्रिय सामग्रियों के साथ भोजन करना चाहिए।
अति शीघ्रता से भोजन से हानि –
अति शीघ्रता से भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि जल्दी-जल्दी भोजन करने से आहार अन्य मार्ग में जैसे श्वास नलिका में चला जाता है, और भोजन उचित रूप में अपने स्थान में नहीं ठहरता है ।
अति विलंबित आहार से हानि —
भोजन अधिक धीरे-धीरे नहीं करना चाहिए क्योंकि, अधिक देर तक भोजन करने से तृप्ति नहीं हो पाती है, आहार अधिक मात्रा में ग्रहण हो जाता है, आहार द्रव्य शीतल हो जाता है तथा आहार का पाक विषम होता है।
मन से आहार लेने से लाभ —
वार्तालाप ना करते हुए और ना हंसते हुए भोजन में मन लगाकर भोजन करना चाहिए । बातचीत करते हुए, हंसते हुए या बिना मन के भोजन करने से भोजन का ठीक से पाचन नहीं होता है और भोजन विमार्ग में जाने का खतरा रहता हैं ।
आत्म शक्ति के अनुसार आहार लेने से लाभ —
अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए । यह आहार द्रव्य मेरे लिए हितकारी है यह आहार द्रव्य मेरे लिए हानिकारक है इस प्रकार से अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए।