जीवन देने के साथ उपचार भी करते है औषधीय पौधे

“आयुर्वेद की औषधि करे दूर किडनी की पथरी “

पहले जो रोग बुढ़ापे के लक्षण माने जाते थे वो सभी आजकल युवावस्था में ही हो जा रहे है। ऐसे रोगों में से एक है -किडनी में पथरी होने की प्रवृत्ति होना। जाहिर है ऐसा होने में कही ना कही हमारी गलत ख़ानपान और दिनचर्या ही जिम्मेदार है।

चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार ने बताया की दरअसल, हमारे यूरीन में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो शरीर में स्टोन बनने से रोकते हैं। ये तत्व हैं साइट्रेट, विटामिन बी 6, मैग्नीशियम आदि। जिन लोगों में ये तत्व कम मात्रा में या नहीं होते है, उनमें स्टोन बनने की आशंका बढ़ जाती है। आयुर्वेद के ग्रंथों में लगभग 5000 वर्ष पूर्व से ही किडनी स्टोन यानी वृक्क अश्मरी का वर्णन मिलता है और इसकी सफलतापूर्वक चिकित्सा के लिए औषधियों के साथ साथ शल्य चिकित्सा का भी उल्लेख मिलता है।

किन लक्षणों से पथरी का पता चलता है-
1. पेट में किडनी के पास वाले हिस्से में असहनीय दर्द होना
2. पेशाब करते समय दर्द एवं जलन होना
3. पेशाब का पीला होना
4. पेशाब में बहुत ज्यादा बदबू होना
5. पेशाब में खून आना
6. उलटी जैसा लगना 

क्या करें की पथरी न हो –
आयुर्वेद का मूलभूत सिद्धांत है की रोग को होने ही ना दिया जाए। इसके लिए निम्न उपयो द्वारा स्टोन को बनने से रोका जा सकता है-
1. टमाटर, चुकंदर, अमरुद या पालक कम मात्रा में खाएं। 
2. रेड मीट यानी बकरे और अन्य बड़े जानवरो का मांस खाना छोड़ दें या फिर बिल्कुल कम खाएं यानि महीने में एक-दो बार से ज्यादा न खाएं। 
3. खूब पानी पिएं। रोजाना कम-से-कम 9-10 गिलास पानी पिएं। 
4. बीज वाली चीजों का सेवन कम मात्रा में करें ।

क्या है आयुर्वेद में इलाज़-
किडनी स्टोन का बेहतर इलाज़ केवल आयुर्वेद में है। बड़े बड़े यूरोलोजिस्ट भी इस बीमारी में आयुर्वेद की दवाओं से ही इलाज़ करते है। सामान्य रूप से 10 mm तक की स्टोन का इलाज़ औषदियो से आसानी से हो जाता है लेकिन यदि स्टोन का साइज इससे बड़ा हो तो शल्य क्रिया द्वारा निकाल देना चाहिए।
1. किडनी की पथरी के इलाज के लिए आयुर्वेद में पाषाणभेद या पथरचट नाम के पौधे के 5-6 पत्ते आधा गिलास पानी में उबाल कर सुबह-शाम पिएं।
2. वरुणादि क्वाथ, गोक्षुरादि गुग्गुल, पुनर्नवा क्वाथ आदि दवाएं भी बहुत कारगर है।
3. गोक्षरू, तृणपंचमूल, पुनर्नवा आदि औषधियों के द्वारा इसमे लाभ मिलता है।
4. कुलथी की दाल इसमे बहुत लाभ पहुचाती है।

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